श्रावण का पावन मास प्रारंभ है। इसी के साथ विश्वभर से शिवभक्त अपने-अपने कांवर के साथ बाबा बैद्यनाथ का अभिषेक करने निकल पड़े हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित प्रसिद्ध शिव मंदिरों में शिवभक्तों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। सनातन धर्म में इस माह की महिमा का बखान विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मुक्तकंठ से की गई है। आइए हम भी जानते हैं कि आखिर भगवान शिव को श्रावण मास माह अत्यंत प्रिय क्यों है और आखिर क्यों शिवभक्त इस पूरे माह भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं?
सरल उपायों से प्रसन्न होते हैं बाबा
- वैसे तो भगवान भोले भंडारी मात्र भाव के ही भूखे हैं। अर्थात्, भक्तिभाव से इनकी उपासना या आराधना करने वाले भक्तों पर बाबा शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। परंतु, कुछ ऐसी समय भी हैं जो भगवान भोलेनाथ को अत्यंत ही प्रिय हैं और इस समय भगवान भोलेनाथ के स्मरण मात्र से ही प्राणियों का कल्याण संभव है। पुराणों में सोमवार, महाशिवरात्रि (फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की तृतीया तिथि), शिवरात्रि (प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की तृतीया तिथि) तथा श्रावण के पूरे माह में भगवान शिव का स्मरण, मनन, चिंतन, पूजन, तप, व्रत-उपवास, रुद्राभिषेक, कवच का पाठ आदि अत्यंत फलदायक माना गया है। देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ को सुल्तानगंज के उत्तरवाहिनी गंगा जल से जलार्पण करने का विधान है। पुराणों में उल्लेखित है कि काँवर यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करने वाले भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इसलिए प्रिय है सावन मास
सावन मास में शिव भक्ति का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसीसे उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए श्रावण मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का विशेष है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रुप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है जिसमें कोई संशय नहीं है।
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