Tuesday, 18 July 2017

रावणेश्वर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा


देवों की नगरी देवघर में भगवान शिव साक्षात बसते हैं।झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थापित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंगके दर्शन हेतु विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालुगण आते हैं।यहाँ समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।



आइये जानते हैं ज्योतिर्लिंग के स्थापना का रहस्य


रावणेश्वर "बैधनाथ ज्योतिर्लिंग" शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रमुख है। पुराणों के अनुसार, रावण भगवान भोलेनाथ का परम भक्त था।वह भगवान भोलेनाथ को अपनी भक्ति की सीमा में बांधकर रखना चाहता था। इसके लिए रावण ने कई उपाय किए पर भगवान भोलेनाथ भला एक के होकर कैसे रह सकते थे इसलिए रावण का हर दांव खाली गया।
जब रावण हारकर अपने सिर को काटने लगा तो शिव प्रकट हुए और रावण के साथ लंका जाने के लिए तैयार हो गए। लेकिन शर्त रख दी कि मैं तुम्हारे साथ लिंग रूप में चलूंगा। यह लिंग तुम जहां रख दोगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाउंगा। रावण को अपनी शक्ति का बड़ा अभिमान था उसने सोचा कि शिवलिंग कितना भारी होगा इसे उठाकर में सीधा लंका ले जाऊंगा, यही सोचकर इसने शिव जी की शर्त झट से स्वीकार कर ली।
भगवान विष्णु ने देखा कि रावण शिव जी को लेकर लंका जा रहा है तो उन्हें जगत की चिंता सताने लगी। भगवान विष्णु ग्वाले के रूप में रावण के सामने प्रकट हो गए। इसी समय रावण को लघु शंका लगी और उसने ग्वाला बने विष्णु से अनुरोध किया कि शिवलिंग को अपने हाथों में थाम कर रखे, जब तक कि वह लघु शंका करके आता है।
रावण के पेट में गंगा समा गयी थी इसलिए वह लंबे समय तक लघुशंका करता रहा। इसी बीच ग्वाला बने विष्णु ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया और शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। रावण जब लघुशंका करने के बाद लौटा तो भूमि पर रखे शिवलिंग को देखकर ग्वाले पर बहुत क्रोधित हुआ। लेकिन वह कर भी क्या सकता था।
रावण ने शिवलिंग को उखाड़ने का पूरा प्रयास किया लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। क्रोध में आकर रावण ने शिवलिंग को अपने अंगूठे से दबा दिया और वहाँ से चला गया।अंततः समस्त देवी-देवता प्रसन्न होकर भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने स्वयं यहाँ मन्दिर का निर्माण किया है।

      ◆● बाबा बैद्यनाथ की महिमा अपरंपार है। ●◆

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